पश्चिम बंगाल में वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन, खासकर मुर्शिदाबाद में, हिंसक हो चुका है। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया, वाहनों में आग लगाई और सड़कें जाम कीं, जिसके जवाब में पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद की गईं और निषेधाज्ञा लागू की गई। अब तक 118 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
वहीं, दूसरी ओर राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वो बंगाल में वक्फ कानूनों को लागू नहीं होने देंगीं। हालही में एक राष्ट्रीय चैनल के कार्यक्रम में बंगाल की ताजा स्थित पर चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, समीर चौगांवकर, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी और अवधेश कुमार मौजूद रहे।
पूर्णिमा त्रिपाठी ने कहा यह एक तरह से अराजकता को बढ़ावा देने वाली राजनीति है। मुझे लगता है कि हाल ही में बंगाल में एक मामला सामने आया है। इसमें करीब 26 हजार शिक्षकों की नौकरी चली गई। मुझे लगता है कि इस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की हिंसा को हवा दी जा रही है। ममता बनर्जी का इस मुद्दे पर जो भी रुख रहा है, उससे उनकी राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करने की दावेदारी खत्म होती दिख रही है।
रामकृपाल सिंह ने कहा बंगाल के जो आज के दृश्य हैं, उसके लिए हमें उसके इतिहास को भी देखना चाहिए। 70 के दशक के बाद से बंगाल में सत्ता परिवर्तन के साथ हिंसा का भी परिवर्तन होता है। पहले कांग्रेस के खिलाफ वामपंथी दल लड़े। उसके बाद वामपंथी दलों से ममता बनर्जी लड़ीं। ममता हमेशा इस इंतजार में रहती हैं कि कोई ऐसा मुद्दा मिल जाए, जिससे वो ध्रुवीकरण कर सकें। वक्फ बिल का मुद्दा ऐसा ही है। हालांकि, अब तक चीजें थोड़ी बदली हैं।
अवधेश कुमार ने कहा कि उस वीडियों में यह कहीं नहीं दिख रहा है कि जिसमें एक भी शख्स ऐसा कह रहा हो आप भगवा झंडा मत उतारिए। मुर्शिदाबाद में 65 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। जहां वक्फ कानून को लेकर हिंसा हो रही है। आपने संदेशखाली में भी देखा है। बंगाल की पुलिस केंद्रीय एजेंसियों का साथ नहीं देती है। मुस्लिम वोट के लिए राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या होती रही है।
विनोद अग्निहोत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून से जुड़ी सारी याचिकाएं स्वीकार कर कर ली हैं और 16 अप्रैल से इस पर सुनवाई भी शुरू होगी, लेकिन राजनीति भी तो चलेगी। अक्तूबर में बिहार में चुनाव होने हैं और अगले साल की शुरुआत में बंगाल में चुनाव होने हैं। बंगाल का राजनीति चरित्र ही ऐसा बन चुका है। ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं तो उनकी जिम्मेदारी है कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब नहीं हो, लेकिन ममता बनर्जी ने प्रो पीपुल गवर्नेंस का मॉडल नहीं दिया। ममता बनर्जी का ये कहना कि हम केंद्रीय कानून लागू नहीं करेंगे, ये कहीं से भी सही नहीं है। राज्य सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वो केंद्रीय कानून लागू करे।
समीर चौगांवकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरोध से ज्यादा ममता बनर्जी के लिए अपने समर्थकों को साथ बनाए रखना चुनौती है। उनकी दूसरी सबसे बड़ी समस्या उनके अपने ही सांसदों का एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकना भी है। भाजपा ने जिस तरह हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में सफलता पाई है, उसके बाद ममता को यह डर है कि अगर बंगाल में भाजपा की ताकत बढ़ रही है और अगर उसने सात से आठ फीसदी वोट बढ़ा लिए तो उनके लिए सत्ता में बने रहना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ममता मुस्लिम वोट बैंक के साथ, अपने महिला और बांग्ला वोट को भी अपने साथ बनाए रखना चाहती हैं।
कुल मिलाकर, यह विवाद बंगाल की राजनीति में गहरे ध्रुवीकरण और कानून-व्यवस्था की चुनौतियों का केंद्र बन गया है।