रामनवमी पश्चिम बंगाल में 2010 के दशक के मध्य तक अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहा और यह मुख्य रूप से हिंदी भाषी समुदायों तक सीमित था। हालांकि, पिछले एक दशक में यह त्योहार राज्य में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा का केंद्र बन गया है, जो अक्सर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जुड़ा हुआ है।
वर्ष 2016 से पहले, रामनवमी पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला सार्वजनिक त्योहार नहीं था, सिवाय कुछ क्षेत्रों में जहां गैर-बंगाली आबादी रहती थी। अपनी समन्वयी संस्कृति और दुर्गा पूजा जैसे प्रमुख त्योहारों के लिए जाना जाने वाला यह राज्य ऐतिहासिक रूप से रामनवमी के बड़े जुलूसों या संबंधित अशांति का गवाह नहीं था। यह उत्सव आम तौर पर सादगीपूर्ण था, जिसमें सार्वजनिक प्रदर्शन या राजनीतिक भागीदारी न्यूनतम थी।
रामनवमी से संबंधित हिंसा का बढ़ना 2016 के आसपास शुरू हुआ, जब बीजेपी 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता में आने के बाद राज्य में अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने में लगी थी। बीजेपी और संबद्ध हिंदुत्व संगठनों जैसे विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने रामनवमी जुलूसों को हिंदू पहचान को मजबूत करने के साधन के रूप में बढ़ावा देना शुरू किया, खासकर मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में। इस बदलाव ने पहले की परंपराओं से हटकर प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता की नई गतिशीलता को जन्म दिया।
हिंदुत्व समर्थक समूहों द्वारा “जय श्री राम” के नारे लगाते हुए हथियारबंद जुलूसों के आयोजन के साथ पहली उल्लेखनीय अशांति देखी गई। उत्तर 24 परगना और बीरभूम जैसे जिलों में छोटे-मोटे झड़पें हुईं, हालांकि ये स्थानीय और नियंत्रित रहीं।
वर्ष 2018 में हिंसा बढ़ गई, जिसमें आसनसोल (पश्चिम बर्धमान), उत्तर 24 परगना, पुरुलिया, बीरभूम, हुगली और मुर्शिदाबाद जैसे कई जिलों में झड़पें हुईं। आसनसोल में सांप्रदायिक दंगों में कम से कम चार लोगों की मौत हुई, जिसमें एक नाबालिग भी शामिल था। पत्थरबाजी, आगजनी और धार्मिक स्थलों पर हमले इस अशांति की विशेषता थे। आसनसोल के इमाम रशीदी ने अपने बेटे की हत्या के बावजूद शांति की अपील कर स्थिति को और बिगड़ने से रोकने में सकारात्मक भूमिका निभाई। इस बीच, बीजेपी ने टीएमसी पर हिंदू त्योहारों को दबाने का आरोप लगाया, जबकि टीएमसी ने बीजेपी पर चुनावी लाभ के लिए हिंसा भड़काने का इल्जाम लगाया।
वर्ष 2019 से 2022 तक रामनवमी जुलूसों का पैमाना और दृश्यता बढ़ी, जिसमें अक्सर तलवारों और त्रिशूलों जैसे हथियारों का प्रदर्शन हुआ, जिससे यह चिंता बढ़ी कि ये जुलूस आक्रामक रैलियों में बदल रहे हैं। इस बीच हिंसा अधिक बार हुई, खासकर औद्योगिक और मिश्रित आबादी वाले क्षेत्रों में।
वर्ष 2022 में 10 अप्रैल को रमजान के दौरान देश भर में रामनवमी जुलूसों के दौरान व्यापक हिंसा हुई, जिसमें पश्चिम बंगाल भी शामिल था। आसनसोल में बराकर मारवाड़ी विद्यालय से शुरू हुए एक जुलूस में हिंसा भड़क उठी, जब प्रतिभागियों ने बराकर बाजार में वाहनों में आग लगा दी और पत्थर फेंके, जिसके जवाब में प्रतिक्रिया हुई।
वर्ष 2023 और 2024 में पश्चिम बंगाल में रामनवमी हिंसा अपने चरम पर पहुंची, जिसमें घटनाओं ने राष्ट्रीय ध्यान, न्यायिक हस्तक्षेप और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जैसी एजेंसियों की जांच को आकर्षित किया।
30 मार्च 2023 को हावड़ा (शिबपुर), हुगली (रिषड़ा) और उत्तर दिनाजपुर (डालखोला) सहित कई स्थानों पर हिंसा भड़क उठी। हावड़ा में एक जुलूस के दौरान वाहनों में आग लगा दी गई, दुकानों में तोड़फोड़ हुई और पत्थरबाजी हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत और कई लोग घायल हुए। पूर्व मुख्य न्यायाधीश एल. नरसिम्हा रेड्डी के नेतृत्व में एक तथ्य-जांच समिति ने दंगों को “पूर्व नियोजित, सुनियोजित और उकसाया हुआ” करार दिया, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के “मुस्लिम क्षेत्रों” में जुलूसों के खिलाफ चेतावनी जैसे भड़काऊ भाषणों की ओर इशारा किया गया। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एनआईए जांच का आदेश दिया, और 2024 तक एजेंसी ने वीडियो फुटेज के आधार पर 27 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्हें एक विशिष्ट समुदाय को निशाना बनाने की साजिश का हिस्सा बताया गया।
वर्ष 2024 में 17 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के शक्तिपुर और रेजिनगर क्षेत्रों में एक जुलूस के दौरान हिंसा हुई, जिसमें छतों से पत्थरबाजी और बमों से 20 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे। धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई, और पुलिस ने आंसू गैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया। टीएमसी ने बीजेपी पर लोकसभा चुनावों से पहले अशांति फैलाने का आरोप लगाया, जबकि बीजेपी ने टीएमसी पर उकसावे और पुलिस की मिलीभगत का इल्जाम लगाया।
30 मार्च 2025 (वर्तमान तिथि) तक, रामनवमी से पहले राज्य में तनाव बढ़ रहा है। 29 मार्च को एक्स पर पोस्ट में मालदा के मोथाबारी इलाके में सांप्रदायिक झड़प की खबर थी, जिसमें 34 गिरफ्तारियां हुईं और हिंदू संपत्तियों पर हमले के बाद इंटरनेट निलंबित कर दिया गया। इसके बाद मुर्शिदाबाद और पूर्व मेदिनीपुर में भी हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं घटी है। हालांकि अभी पूरी तरह सत्यापित नहीं हुई हैं, यह संकेत देती हैं कि त्योहार से पहले अशांति का पैटर्न बना हुआ है।
दरअसल बीजेपी का बंगाल में प्रभाव बढ़ाने का प्रयास धार्मिक त्योहारों जैसे रामनवमी पर केंद्रित है, जो टीएमसी की धर्मनिरपेक्ष नीतियों और कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से टकराता है। दोनों दलों पर तनाव भड़काने का आरोप है। रामनवमी का शांत उत्सव से सार्वजनिक प्रदर्शन में बदलना, खासकर मिश्रित या अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में, सांप्रदायिक घर्षण को बढ़ा रहा है। असंगत पुलिस कार्रवाई और पक्षपात या निष्क्रियता के आरोप भी चर्चा में रहे हैं।
हालांकि हर साल हर जिले में हिंसा नहीं हुई, 2016 से बार-बार होने वाली घटनाएं पश्चिम बंगाल के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव को दर्शाती हैं।