जेम्स मैकडोनाल्ड ने पत्रकारिता के बारे में कहा था कि पत्रकारिता कोई पेशा नहीं बल्कि उससे भी ऊपर की चीज है। पत्रकारिता संघर्षों से परिपूर्ण एक जीवन है जिसमें पत्रकार अपने आप को समर्पित कर देता है। उन्होंने यह भी कहा था कि पत्रकारिता युद्ध से भी मुश्किल काम है।
पंडित नेहरू का मानना था कि पत्रकारिता राष्ट्रीयता का चिंतन तथा न्याय के विरुद्ध शक्तियों को अवरुद्ध करने एवं नए राष्ट्र के निर्माण का सबसे सशक्त माध्यम है।
बाल गंगाधर तिलक ने पत्रकारिता को जन जागरण का सबसे सशक्त माध्यम करार दिया था।
गणेश शंकर विद्यार्थी ने पत्रकारिता का एकमात्र उद्देश्य जन सेवा और लोकहित माना था।
पंडित पराड़कर ने कहा था, पत्रकारिता यानी तलवार की धार पर धावना है।
पांडे बेचन शर्मा ‘उग्र’ ने कहा था पत्रकार बनने से पूर्व आदमी को यह समझ लेना चाहिए की पत्रकारिता त्याग का मार्ग है, ना की जोड़ का। जिस भाई बहन को भोग और विलास की लालसा हो वह कोई और धंधा करे।
अतीत से वर्तमान तक मानव जीवन के विकास में पत्रकारिता ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पत्रकारों की तपस्या ही है जिसके कारण पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ समझा जाने लगा। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में कुछ स्वघोषित ऐसे ऐसे कारनामे कर रहे हैं जिससे पत्रकारिता बदनाम हो रही है। वह निरंतर अपने क्रियाकलापों से पत्रकारिता को गर्त में ले जा रहे हैं। आज जिसके हाथ में मोबाइल फोन है वही स्वघोषित पत्रकार बन बैठा है। प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं के सामने दुम हिलाने वाले लोगों को समाज के एक वर्ग ने पत्रकार के तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। पत्रकारिता की आड़ में नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के प्रश्रय से ये स्वघोषित पत्रकार ऐसी ऐसी ऐसी नीचे हरकतें कर रहे हैं जिसके बारे में लिखने पर कलम को भी शर्म आती है। ऐसे स्वघोषित पत्रकारों का असल चरित्र बार-बार सामने आया है। चंद सिक्कों की खनक के चक्कर में ऐसे लोग पत्रकारिता को किसी प्रशासनिक अधिकारी या किसी नेता के यहां गिरवी रखने में नहीं हिचकते। पत्रकारों की जमात में शामिल ऐसे तत्वों के कारनामों के कारण अपना सब कुछ त्याग कर समाज, देश और मानवता के हित में पत्रकारिता कर रहे लोगों को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
यदि हुगली जिले की बात करें तो हुगली जिले में हाल के दिनों में ऐसे स्वघोषित पत्रकारों की बाढ़ आ गई है। हुगली जिले में ऐसे ऐसे लोग पत्रकार बने बैठे हैं जिन्हें लिखना तक नहीं आता। कुछ स्वघोषित पत्रकारों के ऑडियो भी जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहे हैं जो यह बता रहे हैं कि आज पत्रकारों के भेष में कैसे भेड़िए घूम रहे हैं। असल पत्रकारों को ऐसे लोगों की जमात से दूर रहने की आवश्यकता है अन्यथा ऐसे लोग जब आपके साथ रहेंगे तो बदनामी आपकी भी होगी पत्रकारिता पर सवाल आपके भी उठेंगे।
ऐसे स्वघोषित पत्रकारों को मैं बस इतना समझाना चाहूंगा कि पत्रकारिता एक तपस्या है इसमें त्याग करना पड़ता है। अच्छा करियर बनाना है, रुपए कमाने हैं तो कोई धंधा कर लीजिए कम से कम पत्रकारिता को गंदा मत कीजिए।
धनंजय पाण्डेय
बिल्कुल सही कहा है आपने,ऐसे स्वघोषित पत्रकारों की वजह समाज में भ्रांतियां फैली हुई है,जिनके पास ना तो शब्द है ना ही संवाद लिखनें की कला,ये अपना झोला उठाते है और चल पड़ते है भैयागिरी करने, इन्हें ना ही अपनें सम्मान की चिंता है और ना ही संबंधित पेशे की,ये केवल स्वघोषित पत्रकारों की बात नही ये फार्मूला घोषित पत्रकारों के साथ भी लागू होता है जो चंद खनकते सिक्कों पर ही अपना वजूद बेच देते है,कुछ तो अखबार की प्रतियां लेकर भईया (नेता )के घर के बाहर घंटों बैठे रहते है।किंतु एक बात है यह चाटुकारिता मीडिया हाउस ही सिखाते है जो खबर के साथ साथ विज्ञापन लाने का दबाव बनाते है बेचारा पत्रकार,अब तो कुछ मीडिया हाउस के लोग सत्ता पक्ष के साथ इस तरह मिल गए है जैसे दूध पानी के साथ,खबर पढ़ने पर लगता है की अखबार किसी पार्टी का मुखपत्र है,आप भी पढ़ते होंगे।
स्वघोषित पत्रकारों द्वारा पत्रकारिता को बदनाम करने के कारण समाज में चौथे स्तंभ के प्रति विश्वास में कमी आ रही है। जब पत्रकारिता का उद्देश्य निष्पक्ष और सत्य सूचना प्रदान करना होता है, तब स्वघोषित पत्रकार अपनी व्यक्तिगत राय और झूठी खबरें फैलाकर जनता को गुमराह करते हैं। यह स्थिति न केवल पत्रकारिता की साख को नुकसान पहुँचाती है, बल्कि समाज में अविश्वास और गलतफहमियों को भी बढ़ावा देती है। समाज को इस समस्या से निपटने के लिए सतर्क रहना और सटीक व विश्वसनीय स्रोतों से ही जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।