
बहेलिया और कबूतर
बहेलिया और कबूतर की कहानी हर कोई जानता है,
हर बार बहेलिया आता है,
जाल फैलाता है,
दाना डालता है,
हर बार कबूतर दाना चुगने आते हैं,
कुछ दाने खाते हैं,
दूसरे दानों पर जाने की बाबत,
वे पंख फडफडाते,
जाल में बहेलिये के खुद को हैं पाते।


अबकी बार मुखिया ने युक्ति ये सोची,
कबूतरों को ज्ञानी बनाते हैं,
जाल में न फँसे,
तरकीब बताते हैं,
अभ्यास कराता है,
सबको रटवाता है।
“कबूतरों याद ये रखना,
बहेलिया आयेगा,जाल फैलायेगा,
दाना बिखरायेगा,
फँसना मत।
भोले कबूतर,
रटते थे बातों को,
ओट में बहेलिया खडा मुसकुराता था।
इस बार उसने फिर जाल फैलाया ,
दाना बिखेरा,
उसे था मालूम,
कबूतर रटेंगे,
पर दाने पर आयेंगे,
जाल मे फसेंगे,
पर रटते ये जायेंगे,
दाना फैलाएगा,
जाल बिछाएगा,
फँसना मत।
