
प्रजातंत्र या गुंडा तंत्र?
चुनाव या दखल ?
स्वजनहारा परिजन या स्वजनपोषन करते नेता?
नेता अब कोई नहीं,
सब के सब व्यवसायी हैं,
चुनाव के व्यवसाय पर कब्जा करने वाले प्रतिभागी।
प्रश्न है,
सजग कौन?
प्रश्न है,
किसका मेरूदंड सीधा?
बुद्धिजीवी का!
जो नीरव हैं,
इस दमन काल में,
कभी मोमबत्तियां जलानेवाले,
कभी देश को रहने लायक न माननेवाले,
सत्ता के साथ सांठ-गांठ कर मज़ा लूटनेवाले
या वे
जो प्रजातंत्र के उत्सव में शरीक हुए,
मताधिकार को भ्रमवश अपना अधिकार मान बैठे
जो चुनना चाहते हैं अपना प्रतिनिधि
जो कर सके उनके लिए काम
या वे
जो किसी मालिक के कहने पर
जी जान से लगे हैं
उनको जीताने में
लाठी, पिस्तौल,बम लेकर
ताकि अगले पांच साल तक लूटकर
थोड़ा उच्छिष्ट उन्हें भी देदे।
पर
मेरूदंड सीधा रहता है,
सिर्फ आम जनता का,
प्रजातंत्र जिंदा रखते हैं,
ये गांवों-कस्बों,शहर की सड़कों पर रहनेवाले लोग,
खेतों में खून-पसीना बहाते लोग,
सीमाओं पर जान देती इन्हीं आम लोगों की संतानें।
बाकियों का क्या?
वे तो सबकुछ बेंच दे,
अमन-चैन,शिक्षा-स्वास्थ,
गाय-बैल,
देश की सीमाएं।
मेरे देश में गुलामी कभी समाप्त नहीं हुई,
राजतंत्र कभी गया नहीं।
बचा है
प्रजातंत्र के नाम पर,
अपनी औलादों को,
देश की मसनद पर बैठाते,
देशी गजनी,गोरी
कवि वर्तमान समय में हुगली जिले के एक सुप्रसिद्ध हिन्दी विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं।
Wish Rishra Samachar all the best.
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रिषड़ा समाचार को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।