यह कविता वर्ष 1992 में रिषड़ा विद्यापीठ की वार्षिक पत्रिका आलोक में प्रकाशित हुई थी।
विद्यापीठ
कुमारी पुष्पा तिवारी (बालिका विभाग)

रिशड़ा विद्यापीठ हमारा है हुगली की शान ।
कहते सभी, बढ़ाया इसने है, रिशड़ा का मान ॥
भवन विशाल स्वच्छ-सुन्दर है वातावरण प्रशान्त ।
देते रहते जहाँ सुधीजन ज्ञानदान निर्भ्रान्त ॥
शिष्टाचार सम्पदा से गुरु-शिष्य यहाँ सम्पन्न ।
दुर्बिनीति, दुष्टता, अलसता रहती यहाँ विपन्न ॥
सारस्वत साधना सिद्धि का यह पुनीत है क्षेत्र ।
यहाँ मूढ़ मतिजन के भी खुल जाते प्रज्ञा नेत्र ॥
सुधा धार से इसे सिक्त करती है उमा भवानी।
यहाँ अविद्या- तमस नही कर पाते हैं मननानी ॥
कण कण में है मूर्तिमान इसके शुभ शिव-संकल्प।
ढूढ़े कहीं नहीं मिलता है इसका और विकल्प ।।
हंस वाहिनी देवि शारदा का यह मन्दिर अनुपम ।
ज्ञान-सरोवर का प्रफुल्ल विकसित शतदल यह निरूपम ॥
आर्शीर्वाद इसे दो मातः ऋतम्भरे ! कल्याणी ।
दिग्-दिगन्त में गूंज उठे इस विद्यालय की वाणी ।
तमस अविद्या भगे देखकर इसका तेज प्रचंड।
बना रहे यह लोक चेतना का उन्नत ध्वजदंड।।
Lovely