
जीवन एक लहर
लहरों की कश्ती से,
यादों की बस्ती में फेरा लगाता हूँ,
कुछ दूर जाता हूँ,
फिर लौट आता हूँ।
आने और जाने में,
जाने-अनजाने में,
चाहे-अनचाहे में,
फेरा लगाने में,
मिलते थे राहों में,
कितने मुसाफिर यूँ,
कुछ से मोहब्बत थी,
कुछ से शिकायत थी,
कुछ को न जाना था,
नाही पहचाना था,
जिनको था पहचाना ,
क्या वो ही अपने थे।
यादों की बस्ती में,
लहरों की कश्ती से,
ढूँढा तो पाया ये,
अपने – बेगानों के,
रिश्ते और नातों के,
बैठा भँवर में यूँ,
लहरों की कश्ती में।
छोड़ा था खुद को इन यादों की बस्ती में।
इस पार आता था, उसपार जाता था,
यादों की बस्ती में गोता लगाता था।
कितनी हिंडोलें थीं,
कैसी वो मस्ती थी,
पूरवईया पालों को कैसे हिलाती थी,
पछुआ भी हमको ना लोरी सुनाती थी।
बदली हवाओं के,
बदले मिजाजों में,
लहरों में हलफी यूँ रह रहके उठती थी,
कश्ती मगर अपनी राहों में चलती थी।
पतवार लहरें ही,
लहरें खेवैया भी,
खेवा भी लहरें ही,
कश्ती मे बैठा मैं , यादें संजोता था,
अपने – बेगाने की, गिनती गिनाता था।
पतझड- बसंतो की , गर्मी और सर्दी की,
शिशिर- हेमंतों की, बारिश की बूँदों की,
पूरवा की ,पछुआ की, अधंड – तूफानों की,
खेतों- खलिहानों की, गांवों की शहरों की,
उठने की,गिरने की, शिकवा – शिकायत की।
लहरों के तट के उन देशों-परदेशों की,
गंगा की, यमुना की, उनकी बदहाली की,
गंगा के तट पर खडे एक नेता की,
बातों में उसकी उन बजते मृदँगों की,
रागों की, तानो की, चलते कृपाणों की,
शोषित मानवता की, कुचली सी जनता की,
बहनों की इज्ज़त की, असमय में मरते सभी नौनिहालों की,
सोचा आजादी में क्या कुछ न पाऊँगा,
पाया है मैने पर,
शेरों – सियारों को, लोमड सी आँखों को, गिरगिट के रंगों को,
कौवों को, गिद्धों को, पिस्सू और खटमल को,
बदली मानवता पर बैठे उन दीमक को,
क्या कुछ न दिखलाया, क्या कुछ न सिखलाया,
कश्ती न रुकती थी, लहरें न मिटती थीं,
बस्ती जहाँ में यूँही ,बसती रहती थी।
कुछ काल बीता जो,
फेरा लगाते यूँ,
थकता खेवैया भी,
थकती सी सांसों में,
थकती सी आँखों में,
छाया अंधेरा था,
लगता था कश्ती ज्यों अब चल न पायेगी।
पर मैंने पाया क्या,
ये भी सुनाता हूँ,
जीवन लहर ही है,
मरना लहर ही है,
कश्ती भी लहरें हैं,
जीवन की हर मस्ती समझो लहर ही है,
यादें भी लहरें हैं,
वादे लहर ही है,
लहरें मुसाफिर हैं,
लहरें ही स्पंदन हैं,
लहरें ही शिकवा हैं,
लहरें शिकायत हैं,
लहरें ज्यों उठती हैं,
लहरें ज्यों गिरती हैं,
जीवन का हरपल इसी भाँति चलता है।
जीवन के पथ पे यूँ लहरें न गिनना तुम,
लहरें बनाना तुम,
लहरों की कश्ती से,
इसपार आना तुम,
लहरों की फिर एक बस्ती बसाना तुम।
लहरें मोहब्बत का पैगाम लायेंगी,
जीवन में फिर से वे लहरें उठायेंगी।
कवि हुगली जिले के एक प्रसिद्ध हिन्दी विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं।
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