भारत की सांस्कृतिक अनेकता में एकता का प्रतीक है दीपावली
रिषड़ा समाचार विशेष
कार्तिक मास की अमावस्या को देश में महापर्व दीपावली मनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी देश हर्षोलास के साथ दीपावली मनाने को तैयार है। देश में सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षों का वनवास काट कर अयोध्या लौटे थे। उनके आने की खुशी में अयोध्या के लोगों ने घी के दीप जलाए व जश्न मनाया था और तब से भारत में दिवाली की शुरुआत हुई। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विभिन्न धर्मों व विभिन्न स्थानों पर दिवाली मनाने के पीछे अलग-अलग मान्यताएँ और अलग तौर-तरीके हैं। हालाँकि, सब का मकसद आपसी सद्भाव, समभाव और भाईचारे के संदेश का प्रसार करना ही है।
उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और दिल्ली में दिवाली का त्यौहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्री कृष्ण द्वारा शुरू की गई नई परंपरा व उत्सव से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर दिवाली का पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहला दिन धन के देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है, जिसे धनतेरस कहते हैं; दूसरा दिन नरक चतुर्दशी का दिन है, इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस दिन श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के राक्षस का वध किया था; तीसरा दिन माता सीता और श्री राम के अयोध्या वापस आने से जुड़ा है। इसे बड़ी दिवाली कहते हैं। बड़ी दिवाली के दिन सभी लोग नए कपड़े पहनकर अपने-अपने घरों में शाम के समय गणेश और लक्ष्मी का पूजन करते हैं। फिर दीप जलाने के बाद पटाखे जलाते हैं। चौथा दिन गोवर्धन पूजा यानी श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है तो वहीं पांचवा दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस त्यौहार की शुरुआत दशहरे के साथ ही हो जाती है।
पहले यह जान लेते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में दिवाली को लेकर क्या-क्या मान्यताएं हैं और दिवाली किस प्रकार से मनाई जाती है।
दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, लक्षद्वीप और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में दिवाली का पर्व केवल दो दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पहले दिन मनाए जाने वाले नरक चतुर्दशी का विशेष महत्त्व है। नरक चतुर्दशी के दिन यहाँ के लोग पारंपरिक तरीके से स्नान यानी तेल से स्नान करते हैं। तेल से स्नान इसलिये शुभ माना जाता है क्योंकि यहाँ के लोगों का मानना है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मारने के बाद खून के धब्बे हटाने के लिये तेल से स्नान किया था। वहीं, दूसरे दिन दीप जलाकर, रंगोली बनाकर दिवाली मनाते हैं। यहाँ पर लक्ष्मी और नारायण की पूजा होती है।
दक्षिण में दिवाली वाले दिन एक अनोखी परंपरा मनाई जाती है जिसे ‘थलाई दिवाली’ कहते हैं। थलाई दिवाली के अनुसार, नवविवाहित जोड़े लड़की के घर जाते हैं जहाँ उनका भव्य स्वागत किया जाता है और घर के सभी बड़े-बुजुर्ग उन्हें आशीर्वाद एवं उपहार देते हैं। फिर वह जोड़ा दिवाली के शगुन के लिये एक पटाखा जलाता है और सभी लोग मिलकर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिये जाते हैं।
इसके अलावा, आंध्रप्रदेश में हरिकथा का संगीतमय बखान होता है और सत्यभामा की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा होती है। वहीं कर्नाटक में पहला दिन अश्विजा कृष्ण चतुर्दशी (जिसे हम नरक चतुर्दशी कहते हैं) और दूसरा दिन पदयमी बाली के नाम से प्रचलित है। वहाँ पर दूसरे दिन राजा बली से संबंधित कहानियों का उत्सव होता है और महिलाएं गोबर से घर को लीपकर, रंगोली बनाकर दियों से सजाती हैं।
पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार एवं झारखंड में दिवाली की कुछ अनोखी परंपराएँ देखने को मिलती हैं।
पश्चिम बंगाल में दिवाली पर गणेश और लक्ष्मी की नहीं बल्कि देवी काली की पूजा का ज़्यादा महत्त्व है। यहाँ के लोग दिवाली पर घरों व मंदिरों में माँ काली की पूजा-अर्चना करते हैं और प्रसाद के रूप में मिठाई, दाल, चावल और मछली चढ़ाते हैं।
ओडिशा में दिवाली के अवसर पर लोग कौरिया काठी करते हैं। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें लोग अपने मृत पूर्वजों की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद लेने के लिये जूट की छड़ें जलाते हैं। यहाँ के लोग दिवाली के पर्व पर लक्ष्मी, गणेश और काली की पूजा करते हैं।
वहीं, बिहार और झारखंड में दिवाली के पर्व पर पूजा के साथ-साथ पारंपरिक गीत और नृत्य को भी बहुत महत्त्व दिया जाता है। इसके अलावा असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, सिक्किम और मिज़ोरम जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी काली पूजा का विशेष महत्त्व है।
पश्चिम भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव के क्षेत्र में दिवाली का त्यौहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र मे यह पर्व केवल चार दिनों तक मनाया जाता है। दक्षिण के लोग पहले दिन वसुर बरस मनाते हैं जिसमें गाय और बछड़े की पूजा की जाती है; दूसरे दिन धनतेरस मनाते हैं जिसमें व्यापारी वर्ग बही-खाते का पूजन करते हैं; तीसरे दिन नरक चतुर्दशी होती है जिसमें उबटन कर सूर्योदय से पहले स्नान करने और स्नान के बाद परिवार सहित मंदिर जाने की परंपरा है। फिर चौथे दिन दिवाली मनाई जाती है जिसमें शाम के समय मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन यहां पर करंजी, चकली, लड्डू, सेव जैसे पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं। गुजरात में दिवाली को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है।
वहीं, गोवा जैसे शहर में भी दिवाली की बहुत धूम देखने को मिलती है। यहां पारंपरिक रूप से नृत्य और संगीत पर काफी ज़ोर दिया जाता है। यहाँ की दिवाली भी भगवान राम और श्री कृष्ण के सम्मान में मनाई जाती है। दिवाली से एक दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी के दिन यहाँ पर राक्षस के विशाल पुतले बनाए और जलाए जाते हैं।
मध्य भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी दीपावली का त्यौहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। यहाँ के आदिवासियों में भी दीपावली के त्यौहार को लेकर काफी उत्साह रहता है। इस दिन स्त्री-पुरुष सभी नृत्य करते हैं और एक दूसरे के बीच दीपदान की भी परंपरा को निभाते हैं। मध्य भारत में रंगोली की बजाय मांडना बनाने की परंपरा है। यहाँ दियों और मोर के पंखों से घर को सजाया जाता है।
अब जान लेते हैं कि हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में दिवाली मनाने के तौर तरीके और मान्यताएं क्या-क्या हैं।
बौद्ध धर्म में दिवाली इसलिये मनाई जाती है कि इस दिन गौतम बुद्ध अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु में 18 वर्षों के पश्चात वापस लौटे थे। बौद्ध धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु वापस आए तो वहाँ के स्थानीय निवासियों ने लाखों दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। उसी समय बुद्ध ने अपने शिष्यों को “अप्पो दीपो भवः” का उपदेश दिया था और तब से ही उनकी याद में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।
दिवाली वाले दिन बौद्ध मंदिरों व घरों को दीपक से सजाया जाता है। आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायी दिवाली के दिन अपने स्तूपों पर असंख्य दीप जलाकर भगवान बुद्ध को याद करते हैं।
जैन धर्म के लोगों की दिवाली मनाने के पीछे यह मान्यता है कि, इसी दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर को बिहार के पावापुरी में निर्वाण प्राप्त हुआ था। जैन लोग दिवाली के त्यौहार को भगवान महावीर के निवार्ण दिवस के रूप में मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इस दिन विधि-विधान से महावीर स्वामी की पूजा करते हैं और निर्वाण लाडू (नैवेद्य) का प्रसाद चढ़ाते हैं। उसके बाद मंदिरों को दीपकों से सजाया जाता है। इसके अलावा, सायंकाल के समय मंदिर में दीपमालिका की जाती है। दीपमालिका करते समय मन में यह भावना होती है कि हम सभी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो और जीवन में अंधकार का नाश हो।
जैन धर्म में भी दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी व माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इन दोनों माताओं का जैन धर्म में प्रमुख स्थान हैं क्योंकि माँ लक्ष्मी को निर्वाण अर्थात मोक्ष की देवी जबकि माँ सरस्वती को कैवल्यज्ञान अर्थात विद्या की देवी माना जाता है।