रिषड़ा, 05 नवंबर(डेस्क)। हुगली जिले के सबसे बड़े हिंदी विद्यालय रिषड़ा विद्यापीठ में शिक्षा के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को पर्यावरण एवं अन्य विषयों पर भी जागरूक बनाया जाता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण के विषय में सभी का जागरूक होना बहुत जरूरी है।
विद्यालय प्रबंधन का मानना है कि सिर्फ पौधे बांट देने से या पर्यावरण संरक्षण पर व्याख्यान दे देने से, समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसके लिए धरातल पर रहकर और समाधान को मूर्तरूप देने की महती आवश्यकता है। पर्यावरण संबंधी जागरूकता लाने का सबसे महत्वपूर्ण स्थान विद्यालय हैं, जहां देश के भावी कर्णधार तैयार होते हैं। उनमें यदि छुटपन से ही यह जागरूकता लाई जाए तो कोई कारण नहीं कि पर्यावरण संरक्षकों की एक फौज तैयार न हो सके।
यह बात समझने की है कि जब छात्रों को लगता है कि उनकी भागीदारी अहम है तो वे किसी भी वयस्क से अधिक शिद्दत से उस काम में लग जाते हैं।यदि एकबार उनको अपने कार्य का प्रतिफलन दिखने लगता है तो यह एक चाव जगा देता है जो जीवनपर्यंत उनके अंदर रहता है।
रिषड़ा जैसे शहरों में वायु प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है। वर्ज्य पदार्थों को जलाना एक विकट समस्या है। इन शहरों में वृक्षरोपण पर बल देना और अनियंत्रित वर्ज्य दहन को रोकना आवश्यक है। विद्यार्थियों को इस संदर्भ में जमीनी प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से जैव-विविधता पार्क का निर्माण किया गया। छात्रों को रोपण की पद्धति,उसकी सिंचाई, रखरखाव के विषय में बताया गया।
दस वर्षों के कठिन परिश्रम के परिणामस्वरूप आज विद्यालय प्रांगण में पौधों की तकरीबन १०० प्रजातियों के वृक्ष लगाए गए हैं। इन पौधों में कुछ के नाम: १. नारियल २.सुपारी ३.ताल ४.खजूर ५. नीम ६. छातिम ७.महोगनी ८.आम ९.महुआ १०.बांस ११.कदंब १२. चंपा १३. राधाचूडा १४ कृष्णचूडा १५.थूजा १६. ट्रैवलिंग पाम १७.फाक्सटेल पाम १८. अपराजिता १९. जवां २०.बकेन २१.ब्रह्म कमल २२.यूकलिप्टस २३. अमरूद २४. जामुन २५.जामरूल २६.मार्निंग ग्लोरी २७.कृष्णकमल २८. कनेर २९. मुसेंडा ३०.बोगेनबेलिया ३१. पालीएलथिया ३२. अशोक ३३. मिमोसा ३४.कदंब ३५.सहजन ३६.अर्जुन ३७.कटहल ३८. मीठा नीम ३९. कड़ी पत्ता ४०.कामीनी ४१. ड्रेसीनिया ४२.फरकारिया ४३.अनार ४४. एक्सोरा ४५.चमेली ४६.क्रोटान ४७.कामीनी ४८. करौंदा ४९.स्टार फ्रूट ५०.रबर प्लांट ५१. पीपल ५२. तेजपत्ता ५३.केला ५४.पपीता ५५. छोटी शहतूत ५६.बडी शहतूत ५७.एडेनियम ५८. जारूल ५९. झाऊ ६०. तुलसी ६१. दाना मरूआ ६२. सीताफल ६३.लेगरस्ट्रोमिया ६४.शीशम ६५.साल ६६.सागौन ६७.बेल ६८.फालसा ६९. करौंदा ७०.ईमली ७१. पलाश ……. और भी अनेक।
जबसे पौधों की संख्या में वृद्धि हुई है रंग बिरंगी तितलियां, गिलहरियां, मेंढक, नेवला,पंडुक, किंगफिशर, मैना,तोता, गौरय्या और भी अनेकों जीव जंतु यहां आने लगे हैं। एक तरफ विद्यालय जहां हरियाली से आच्छादित हो गया है, दूसरी ओर विद्यालय का माइक्रोक्लाइमेट बदल गया है। छात्रों को जीव विज्ञान और बायलोजी पढ़ने में सहूलियत भी होगी। आनेवाले दिनों में छात्रों की कुछ कक्षाएं यहां कराने के बारे में सोचा जा रहा है। स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार यदि विद्यालय की इस कवायद पर ध्यान दें तो इसे और बेहतर किया जा सकता है। इसका फायदा होगा कि आसपास के जिन विद्यालयों में इस तरह की कवायद नहीं हो सकती उनके छात्र यहां आकर पर्यावरण से संबंधित जानकारी और जैव-विविधता का अध्ययन कर पायेंगे।