
सब अच्छे लगते हैं,बस……..
बहुत अच्छे लगते हैं,
हरे-भरे खेत,
फूलों से पटी पड़ी फूलवारी,
फलों से लदे बाग,
बौराये आम,
बड़ी मनोहर दिखती है,
सरसों के खेत के बीच से जाती पतली सी नहर।
बड़ा अच्छा लगता है,
चिड़ियों का चहचहाना,
गिलहरियों की उछल-कूद,
मोर का नृत्य,
कोयल की कूक,
और
आकाश में सतरंगी इन्द्रधनुष।
गाड़ी से उतरते नेता,
उनका कुत्ता,
उनके बाउंसर,
उनकी प्रेमिकाएं,
उनके प्रासाद,
उनके गले में लटकती,
सोने की चेन।
सच मानो बड़ा मनमोहक मंज़र है,ये सब।
बहुत अच्छा लगता है,
बडे लोगों का जलवा,
उनके यहां हो रहा उत्सव,
बन रहे व्यंजन,
डीजे की धुन।

बस अच्छे नहीं लगते,
भीख मांग कर विरक्त करते लोग,
गरीबों का घर,
मजदूरी मांग रहे मजदूर,
रोजगार मांग रहे युवा,
अस्पताल में दम तोड़ते लोग,
कक्षाओं में अध्यापक मांगते विद्यालय,
एक देश में एक तरह की पगार मांगते कर्मचारी,
फसल की सुरक्षा मांगते किसान,
सड़क के नाम पर हुई लूट की आरटीआई करते नागरिक,
बंद कारखाने को खोलने की बात करते कार्यकर्त्ता,
मेधावी युवाओं की नौकरी जाने पर निर्णय देते न्यायधीश,
अपनी अस्मत बचाने की गुहार लगाती महिलाएं।
आखिर अच्छे क्यों लगें,
ये तो बदनुमा दाग हैं,
आपकी अच्छाई पर।

ये सबके सब चक्रांत कर रहे हैं,
अच्छी सरकारों का,
अच्छे नेताओं का,
उनकी वैध कमाई का!
