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मुर्शिदाबाद हिंसा के‌ बीच बंगाल में फिर राष्ट्रपति शासन की चर्चा, क्या आसान है बंगाल में राष्ट्रपति शासन?

admin by admin
April 15, 2025
in देश-प्रदेश, विचार
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मुर्शिदाबाद में अशांति, हिंसा को नियंत्रित करने में जुटी राज्य सरकार
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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ हिंसा के बाद हालात तनावपूर्ण हैं। बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन की मांग की है। आइए, इस मांग की संवैधानिक प्रक्रिया और संभावनाओं को समझते हैं।

राष्ट्रपति शासन तब लागू होता है जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, यदि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम नहीं कर पाती—जैसे कि कानून-व्यवस्था चरमरा जाए, सरकार बहुमत खो दे, या गंभीर प्रशासनिक संकट हो—तो केंद्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है।

इस दौरान राज्य की विधानसभा निलंबित या भंग हो जाती है। प्रशासन का नियंत्रण केंद्र के पास चला जाता है, जो राज्यपाल या उनके सलाहकारों के माध्यम से शासन चलाता है। मुख्यमंत्री और राज्य मंत्रिमंडल की भूमिका खत्म हो जाती है।

राष्ट्रपति शासन लागू करने की प्रक्रिया

राज्यपाल की रिपोर्ट: राज्यपाल को लगता है कि राज्य में हालात बेकाबू हैं, तो वे केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजकर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।

केंद्र सरकार की सलाह: केंद्रीय मंत्रिमंडल इस रिपोर्ट की समीक्षा करता है और राष्ट्रपति को सलाह देता है।

राष्ट्रपति की मंजूरी: राष्ट्रपति, कैबिनेट की सलाह पर, अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करते हैं।

संसद की मंजूरी: इसे 6 महीने से अधिक चलाने के लिए दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की मंजूरी जरूरी है। हर 6 महीने में इसे बढ़ाने के लिए संसद की सहमति चाहिए।

न्यायिक समीक्षा: सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों की जांच कर सकता है, जैसा कि 1994 के एस.आर. बोम्मई केस में हुआ, जहां कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति शासन तभी लगाया जा सकता है जब कोई और विकल्प न बचे।

संवैधानिक आधार

अनुच्छेद 356: यह राष्ट्रपति को राज्य में संवैधानिक संकट के दौरान शासन अपने हाथ में लेने की शक्ति देता है।

अनुच्छेद 355: केंद्र का दायित्व है कि वह राज्यों को आंतरिक अशांति या बाहरी खतरों से बचाए।

डॉ. बी.आर. आंबेडकर की चेतावनी: उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 356 का उपयोग कम से कम होना चाहिए, ताकि यह “मृत पत्र” न बने।

मुर्शिदाबाद हिंसा और राष्ट्रपति शासन की मांग

मुर्शिदाबाद में हाल की हिंसा के बाद बीजेपी का दावा है कि ममता बनर्जी की सरकार कानून-व्यवस्था संभालने में नाकाम रही है। शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि पुलिस “ममता के कैडर” की तरह काम कर रही है और हिंदू अल्पसंख्यक क्षेत्रों में मतदान के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।

हालांकि, राष्ट्रपति शासन लागू करना इतना सरल नहीं है। इसके लिए:

ठोस सबूत जरूरी: यह साबित करना होगा कि राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। हिंसा या अशांति का होना अपने आप में पर्याप्त नहीं है।

ममता सरकार का बहुमत: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पास विधानसभा में मजबूत बहुमत है, जिससे सरकार की स्थिरता पर सवाल उठाना मुश्किल है।

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: कोर्ट ने बोम्मई केस में स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। अगर इसे राजनीतिक कारणों से लगाया गया, तो कोर्ट इसे रद्द कर सकता है।

क्या बंगाल में राष्ट्रपति शासन संभव है?

मुर्शिदाबाद की हिंसा गंभीर है, लेकिन राष्ट्रपति शासन के लिए यह साबित करना होगा कि पूरे राज्य में संवैधानिक संकट है। वर्तमान में:

हिंसा कुछ क्षेत्रों (सुती, समसेरगंज, धुलियान, जंगीपुर) तक सीमित है।

प्रशासन ने केंद्रीय बलों की तैनाती, इंटरनेट बंदी, और धारा 163 लागू करके स्थिति नियंत्रित करने की कोशिश की है।

ममता बनर्जी की सरकार ने शांति की अपील की है और गिरफ्तारियां भी हुई हैं।

ऐसे में, सिर्फ हिंसा या राजनीतिक मांग के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाना संवैधानिक रूप से चुनौतीपूर्ण है। केंद्र को यह दिखाना होगा कि राज्य सरकार पूरी तरह असफल हो चुकी है, जो मौजूदा बहुमत और प्रशासनिक कार्रवाइयों के चलते कठिन है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1950 से अब तक भारत में 100 से ज्यादा बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, खासकर 1970-80 के दशक में, अक्सर राजनीतिक कारणों से।

पश्चिम बंगाल में आखिरी बार 1971 में राष्ट्रपति शासन लगा था।

सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले ने इसके दुरुपयोग पर रोक लगाई, जिससे अब इसका इस्तेमाल सावधानी से होता है।

मुर्शिदाबाद हिंसा के आधार पर राष्ट्रपति शासन की मांग उठ रही है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं। संविधान इसकी इजाजत तभी देता है जब राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो। ममता सरकार के मजबूत बहुमत और प्रशासनिक कदमों को देखते हुए, हिंसा के सीमित दायरे के कारण राष्ट्रपति शासन लगाना मुश्किल लगता है। हालांकि, अगर स्थिति और बिगड़ती है, तो केंद्र इस पर विचार कर सकता है, लेकिन इसके लिए मजबूत सबूत और संवैधानिक आधार चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी भी इसे और जटिल बनाती है।

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