अशोक वर्मा”हमदर्द”

आज पूरा विश्व धर्म का गलत अनुसरण कर एक दूसरे से लड़ रहे है और पूरी दुनियां पुनः एक बार खात्मे की ओर बढ़ रही है।खास कर भारत पाकिस्तान बांग्ला देश सहित वो तमाम देश है जो धर्मांधता में एक दूसरे के सफाया करना चाहते है,आखिर यह धर्म है क्या ? जिसकी वजह से लोग परेशान है।मैंने इसकी गहन चिंतन की और कबीर दास को ही सही पाया ,उनके अनुसार सच्चा धार्मिक संत वही है जो धर्म को सही रूप में धारण करता है जिसके लिए सांप्रदायिक भेद भाव,सांसारिक मोह माया से दूर स्थितियों में समभाव सुख दुःख लाभ हानि ऊंच- नीच अच्छा बुरा तथा निश्छल भाव से प्रभु भक्ति में लीन रहता है ऐसे ही व्यक्ति सही रूप में धर्म धारण करता है।किंतु हमारे देश का दुर्भाग्य है की कबीर जैसे मनीषी को भी जाति आधारित मान कर कुछ क्षद्मवेषी समाज से दूर करनें का प्रयास किए क्योंकि कबीर ने सदा से ही धर्म के सूक्ष्म रूप का ही लोगों को दर्शन करना चाहा है जो आडंबरों से दूर हो।उनकी तमाम पक्तियों से ये समझ में आता है।वही स्वामी विवेकानंद जैसे विभूति ने भी कहा है की जिस क्रिया को करने से समस्त जीव मात्र का कल्याण हो वही धर्म है,उनके इस बात का समर्थन निरंकारी मिशन के हरदेव सिंह महाराज ने भी की है।उन्होंने भी समीचीन धर्म की ही वकालत की है,आखिर समीचीन धर्म है क्या?समीचीन धर्म एक ऐसा धर्म होता है जो न्याय, सत्य, और आचरण के उच्चतम आदर्शों पर आधारित होता है। यह एक व्यक्ति या समाज के नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के अनुरूप होता है और इसमें समस्त जीवों के प्रति समानता, सहानुभूति, और करुणा का भाव होता है।

विभिन्न संस्कृतियों और दार्शनिक परंपराओं में, समीचीन धर्म का अर्थ अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इसके मूल तत्व हमेशा नैतिकता, न्याय, और सच्चाई के आसपास घूमते हैं। इसका लक्ष्य व्यक्ति और समाज दोनों के कल्याण की ओर होता है, और यह विभिन्न मत-मतान्तरों और धार्मिक परंपराओं के प्रति सहिष्णुता और सम्मान की भावना को प्रोत्साहित करता है।अगर ऐसा है तो भारत में ये अलग रूप लेकर क्यों है।धार्मिक धर्मांधता: भारत की धर्मनिरपेक्षता के लिए एक गंभीर चुनौती है।
भारत, एक ऐसा देश है जहां विविधता में एकता की मिसाल दी जाती है। यहां विभिन्न धर्मों, भाषाओं, और संस्कृतियों का अनूठा संगम है। हमारी धर्मनिरपेक्षता की नींव इसी विविधता पर आधारित है, जो संविधान द्वारा संरक्षित और संरक्षित है। लेकिन वर्तमान समय में, धार्मिक धर्मांधता की बढ़ती प्रवृत्ति इस धर्मनिरपेक्षता के लिए एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है।
धार्मिक धर्मांधता एक ऐसी स्थिति है जहां व्यक्ति या समूह अपने धार्मिक विश्वासों को इतना महत्वपूर्ण मानता है कि वे अन्य धर्मों या विश्वासों के प्रति सहिष्णुता खो देते हैं। यह प्रवृत्ति समाज में असहिष्णुता, हिंसा, और विभाजन को बढ़ावा देती है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों का समान सम्मान किया जाएगा। लेकिन जब धार्मिक धर्मांधता बढ़ती है, तो यह सिद्धांत खतरे में पड़ जाता है।
धार्मिक धर्मांधता के बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं। पहला कारण है अज्ञानता और शिक्षा की कमी। जब लोग अपने धर्म के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं रखते और अन्य धर्मों के बारे में पूर्वाग्रह रखते हैं, तो वे आसानी से धर्मांधता की ओर झुक सकते हैं। दूसरा कारण है राजनीतिक स्वार्थ। कुछ राजनीतिक दल और नेता धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करके अपनी राजनीतिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देकर वोट बैंक की राजनीति करते हैं।
धार्मिक धर्मांधता का प्रभाव समाज के हर क्षेत्र पर पड़ता है। यह समाज के ताने-बाने को कमजोर करता है और सामाजिक शांति को भंग करता है। जब धार्मिक आधार पर विभाजन होता है, तो समाज में आपसी विश्वास की कमी हो जाती है। लोग एक-दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं। इससे समाज में हिंसा और अराजकता फैलती है। इसके अलावा, धार्मिक धर्मांधता आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है। जब समाज में अशांति और हिंसा होती है, तो निवेशकों का विश्वास कम हो जाता है और आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आती है।
धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए हमें कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, शिक्षा का प्रसार और सुधार आवश्यक है। स्कूलों और कॉलेजों में धार्मिक सहिष्णुता और विविधता के महत्व पर जोर दिया जाना चाहिए। हमें बच्चों को सिखाना चाहिए कि सभी धर्मों का सम्मान करना और उनके अनुयायियों के प्रति सहिष्णुता दिखाना महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, हमें समाज में संवाद और संपर्क को बढ़ावा देना चाहिए। विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के साथ संवाद करें, अपने अनुभव साझा करें और आपसी समझ बढ़ाएं।
दूसरा महत्वपूर्ण कदम है कि राजनीतिक दल और नेता धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग बंद करें। उन्हें अपने स्वार्थों के लिए समाज को विभाजित करने के बजाय, समाज के सभी वर्गों के विकास और कल्याण के लिए काम करना चाहिए। धार्मिक धर्मांधता को बढ़ावा देने वाले बयानों और कार्यों से बचना चाहिए।

धार्मिक धर्मांधता के खिलाफ समाज के हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हमें अपने आसपास के लोगों को धार्मिक सहिष्णुता का महत्व समझाना चाहिए और असहिष्णुता के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि भारत की शक्ति उसकी विविधता में है। जब तक हम इस विविधता का सम्मान करते रहेंगे, तब तक हमारी धर्मनिरपेक्षता सुरक्षित रहेगी।
अंततः, धार्मिक धर्मांधता का उन्मूलन हमारे समाज की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है। हमें अपने संविधान की धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना को बनाए रखना होगा और इसे किसी भी तरह के खतरे से बचाना होगा। केवल तभी हम एक सशक्त, समृद्ध और एकजुट भारत का निर्माण कर पाएंगे।
लेखक जाने माने स्तंभकार हैं।