रिषड़ा समाचार विशेष: लोक आस्था के महापर्व छठ के दौरान सामूहिकता और सामजिक एकता की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है। ऐसी सामाजिक एकता और सामूहिकता किसी दूसरे पर्व त्यौहारों में देखने को नहीं मिलती। आस्था के महापर्व में किसी के साथ कोई भी भेदभाव नहीं होता है। छठ महापर्व के दिन छठ घाटों पर भगवान भास्क्रर के सच्चे भक्तों का समागम होता है। एक साथ समूह में जल में खड़े होकर भक्तों का समूह हर प्रकार के भेदभाव को मिटा देता है। भगवान सर्य की कृपा जितनी महलों पर पड़ती है, उतनी ही झोपड़ियों पर भी। इस पर्व में न कोई बड़ा होता है और न कोई छोटा। धर्म के जानकारों का कहना है कि यह व्रत हिंदू समाज को एकसूत्र में बांधकर रखने का संदेश देता है।
इस वर्ष 17 नवंबर से इस महाव्रत की शुरूआत हो चुकी है। 17 नवंबर को नहाय-खाय के बाद 18 को खरना और 19 नवंबर को को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अर्ध्य दिया जायेगा। उसके 20 नवंबर को उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्ध्य देने के साथ ही व्रत का समापन हो जायेगा।
आस्था के इस महापर्व के साफ सफाई का विशेष महत्व है। छठ पूजा के उपलक्ष्य में छठ घाटों की सफाई के साथ साथ सड़कों और गलियों की भी सफाई होती है।
छठ व्रतियों को किसी भी प्रकार की असुविधा नहीं हो इस बात का विशेष खयाल रखा जाता है। छठ महापर्व के आगमन के साथ ही शहरी इलाकों में सामाजिक संस्थाएं और राजनीतिक दल छठ व्रतियों में पूजन सामग्री पूरी श्रद्धा के साथ वितरित करते हैं। कई लोग तो छठ व्रतियों के घर घर जाकर पूजन सामग्री पहुंचाते हैं।
तकरीबन दो दशकों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहने वाले डॉ. जय प्रकाश मिश्र अपने फेसबुक वाल पर लिखते हैं, ”छठ – एक ऐसा त्योहार जो चार दिन चलता है लेकिन इसमें कोई दंगा नहीं होता, इंटरनेट कनेक्शन नहीं काटा जाता, किसी शांति समिति की बैठक कराने की ज़रूरत नहीं पड़ती, चंदे के नाम पर गुंडा गर्दी नहीं होती और ज़बरन उगाही भी नहीं होती। शराब की दुकानें बंद रखने का नोटिस नहीं चिपकाना पड़ता, मिठाई के नाम पर मिलावट नहीं परोसी जाती है। ऊंच – नीच का भेद नहीं होता, व्यक्ति/धर्म विशेष के जयकारे नहीं लगते, किसी से अनुदान और अनुकम्पा की अपेक्षा नहीं रहती है, राजा-रंक एक कतार में खड़े होते है, समझ से परे रहने वाले मंत्रों का उच्चारण भी नहीं होता और पंडितों को दान दक्षिणा का भी इसमें रिवाज़ नहीं है।”