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प्रतिवाद पर पहरा
प्रजातंत्र में प्रतिवाद करने के लिए भी,
खटखटाना पड़ता है,
न्यायालय का दरवाजा,
संविधान की कसम खाकर,
सांवैधानिक पदों पर आसीन लोगों को,
नहीं भाता,
प्रतिवाद,
स्वतंत्र विचार,
विचारों की अभिव्यक्ति।
अनर्गल बातों का,
झूठे वादों का,
चोरी-मक्कारी का,
घूस और फरेब का,
ठीका लिए,
इन संवैधानिक प्रमुखों को,
हक की बातें,
स्वतंत्र आवाजें,
चुभती हैं।
हमें याद है,
यहां आने के लिए,वे भी करते थे,
प्रतिवाद,
बुलाते थे बंद,
करते थे धर्म घट।
ऐसे ही किसी धर्म घट में,
कहा था,
आज के मुखिया ने,
वंचना न होने देंगे।
पर आज तो उलट पुराण है,
वंचना की छोड़ो,
प्रतिवाद पर भी पहरा है।
शुभकामनाएं