रिषड़ा समाचार विशेष
बंगाल में आए हुए यूरोप के व्यापारियों को रिषड़ा के भौगोलिक और आर्थिक महत्व को समझने में देर नहीं हुई। भौगोलिक स्थिति, कच्चे माल की उपलब्धता, सस्ते श्रमिकों की सुलभता और बैंकर्स की सुविधा इत्यादि सभी शर्तों की पूर्ति यहां हो रही थी। नतीजतन रिषड़ा में भारत का सबसे पहले जूट का कारखाना स्थापित किया गया।
यह कारखाना ब्रिटिश व्यवसायी जॉर्ज ऑकलैंड और बंगाली पूंजीपति विशंभर सेन के सहयोग से सन 1855 में रिषड़ा में स्थापित हुआ। क्रिमियन युद्ध के कारण ब्रिटेन में फ्लैस्क और हेंप की आपूर्ति बाधित हुई थी जिसकी वजह से बंगाल में निर्मित जूट की मांग यूरोप के बाजारों में बढ़ गई। प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स की कुछ जमीन रिषड़ा में भी थी। इस जमीन का उपयोग बगीचे के रूप में किया जा रहा था। जमीन के कुछ हिस्सों पर इस कारखाने की आधारशिला रखी गई थी। इस कारखाने की उत्पादक क्षमता 8 टन जूट यार्न प्रतिदिन के हिसाब से था। बहुत ही अच्छा मुनाफा जॉर्ज ऑकलैंड ने इस फैक्ट्री से कमाया बाद में उसने इस फैक्ट्री को लिमिटेड लायबिलिटी कंपनी के रूप में तब्दील कर दिया और इसका नाम दिया रिषड़ा ट्वाइन एंड यार्न मिल कंपनी लिमिटेड। आज यही कारखाना वेलिंगटन जूट मिल के नाम से जाना जाता है।
प्रथम जूट मिल कारखाने की सफलता के पश्चात रिषड़ा में आने वाले 100 सालों तक अलग-अलग कारखाने बड़े पैमाने पर स्थापित किए जाते रहे। इन कारखानों में अच्छी गुणवत्ता वाली विविध वस्तुओं का निर्माण शुरू किया गया जिनकी मांग देश विदेश तक थी। बताया जाता है कि सन 1855 से तकरीबन दो दर्जन से भी ज्यादा उच्च स्तरीय छोटे-बड़े कल कारखाने सिर्फ रिषड़ा में स्थापित हुए। जैसे-जैसे इन उद्योग धंधों का विकास हुआ प्रगति और उन्नति होती गई, वैसे-वैसे रिषड़ा एक अत्यंत ही घनी आबादी वाले नगर के रूप में विकसित होता गया।
इस नगर ने भारत के हर राज्य के कोने-कोने से कामगारों, मजदूरों , श्रमिकों, पूंजीपतियों, लघु व्यापारियों और पेशेवर लोगो को अपनी ओर आकर्षित किया। इन्हीं लोगों ने मिलजुल कर आधुनिक रिषड़ा का निर्माण किया।
क्रमश: